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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी

पवित्र ईर्ष्या
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'मैंने तुमसे कब कहा था कि मैं स्टेशन जाऊँगा जो तुम मुझसे तैयार रहने के लिए कह रही हो? मेरे पास न अखिलेश ने सूचना भेजी है और न मैं आऊँगा। तुम्हारे पास सूचना आई है तो तुम चली जाना ।' विनोद ने कहा और अपना कोट उठाकर फिर बाहर जाने के लिए तैयार हो गए। उन्हें रोकती हुई विमला ने फिर नम्र स्वर में कहा, 'सूचना नहीं भी आई तो चलने में क्या हुआ, तुम्हारे मित्र ही तो हैं?'
'चलने में क्या हुआ, इसका उत्तर मैं नहीं दे सकता, नहीं जाना चाहता यही काफी है', कहते हुए विनोद फिर आगे बढ़े।
विमला ने उनका कोट पकड़ लिया, बोली, 'तुम नहीं जाओगे तो सब लोग बुरा मानेंगे? चलो हम लोग स्टेशन से अपने घर आ जाएँगे, उनके घर न जाएँगे बस ।'
विनोद ने चिढ़कर कहा, 'क्यों सिर खाए जाती हो विन्नो! एक बार कह तो दिया कि मैं न जाऊँगा। तुम्हारा भाई है, तुम खुशी से जाओ, मैं तुम्हें नहीं रोकता। तुम न जाना चाहती हो तो तुम्हें जाने के लिए मैं विवश नहीं करता, फिर तुम्हीं क्यों चलने के लिए मुझ पर इतना दबाव डाल रही हो ।' कहते हुए कोट छुड़ाकर विनोद चल दिए।

विमला चुप हो गई। उसने आज ही अनुभव किया कि विवाह के बाद स्त्री कितनी पराधीन हो जाती है। उसे पति की इच्छाओं के सामने अपनी इच्छाओं और मनोवृत्तियों का किस प्रकार दमन करना पड़ता है। वह जानती थी कि विनोद बार-बार जाने के लिए कहते हैं अवश्य, पर यदि वह सचमुच चली जाए तो उन्हें कितनी मानसिक वेदना होगी; उसके जाने का परिणाम कितना भयंकर होगा।
नियत समय पर कार आई, पर विमला उतरकर नीचे भी न गई; ऊपर से ही दासी के द्वारा कहला भेजा कि सर में बहुत दर्द है इसलिए वह स्टेशन न जा सकेगी।

स्टेशन पर उतरते ही सबसे पहिले अखिलेश ने विमला के विषय में पूछा और उसे अस्वस्थ जानकर उन्हें दुःख हुआ। सबसे मिलजुलकर वह स्टेशन से सीधे विमला के घर आए। विमला स्टेशन न गई थी, फिर भी उसे पूर्ण विश्वास था कि उसे स्टेशन पर न पाकर अखिलेश सीधे उससे मिलने आवेंगे। इसलिए वह अपने छज्जे पर से उत्सुक आँखों से मोटर की प्रतीक्षा कर रही थी। उसने अपनी माँ की मोटर दूर से देखी, और दौड़कर नीचे आ गई। उसे याद न रहा कि वह सिरदर्द का बहाना करके ही स्टेशन नहीं जा सकी है।

विमला ने देखा, विनोद और अखिलेश साथ ही मोटर से उतरे। उनकी माँ उन्हें छोड़कर बाहर से ही चली गई। वह पुरानी प्रथा के अनुसार बेटी के घर जाना अनुचित समझती थीं । विमला उन्हें ड्राइंगरूम में ही मिली। उसे देखते ही अखिलेश ने स्नेहसिक्त स्वर में उससे पूछा, 'कैसी दुबली हो गई हो विन्ना! क्या बहुत दिनों से बीमार हो? देखो अब मैं आ गया हूँ, अब तुम बीमार न रहने पाओगी।'
विमला हँस पड़ी, बोली, अखिल भैया! तुम्हें तो मैं सदा दुबली ही दिखा करती हूँ। पर तुम कितने दुबले हो गए हो? तुम्हारा स्वास्थ्य भी तो बहुत अच्छा नहीं जान पड़ता।

इसी प्रकार बहुत-सी आवश्यक-अनावश्यक बातों के बाद अखिल ने विनोद की पीठ पर एक हलका-सा हाथ का धक्का देते हुए कहा, और क्‍यों बे पाजी! मुझसे बिना पूछे तुझे मेरे बहनोई बनने का दुःसाहस कैसे हो गया?
विनोद हँसता-हँसता बोला-अखिल यार, इतने दिनों तक विदेश में रहकर भी तुम निरे बुद्धू ही रहे। कहीं ऐसी बातें भी किसी से पूछकर की जाती हैं।
अखिल भी हँस पड़ा। रात अधिक हो चुकी थी; इसलिए वह घर जाने के लिए उठे, विमला ने उनसे जाते समय पूछा, “अब कब आओगे अखिल भैय्या?
-तुम जब कह दो विन्नो, अखिल ने उत्तर दिया।
विमला ने उनसे दूसरे दिन फिर आने के लिए कहा, इसके वाद अखिल अपने घर गए।

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